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हुआ सबेरा / प्रदीप शुक्ल

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किरनों ने कुण्डी खटकाई
हुआ सबेरा
सूरज ने दुन्दुभी बजाई
हुआ सबेरा

अलसायी सी
रात उठी
घूँघट झपकाये
तारों की बारात कहीं
अब नज़र न आये
पूरब में लालिमा लजाई
हुआ सबेरा

हरी दूब पर
एक गिलहरी
दौड़ लगाये
सूरजमुखी खड़ी है लेकिन
मुँह लटकाये
ओस बूँद से कली नहाई
भोर हो रही
जूठे बासन
बोल रहे
चौके के भीतर
कल का बासी दूध
जा रही बिल्ली पीकर
मुँह पर उसके लगी मलाई
हुआ सबेरा

ले आया
अखबार
दाल के भाव घरों में
हम अपनी ही बात
ढूँढते हैं ख़बरों में
आओ, दो कप चाय बनाई
हुआ सबेरा