भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अहा! क्या सुन्दर देश हमारा / प्रदीप शुक्ल
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:16, 14 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप शुक्ल |अनुवादक= |संग्रह=अम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मानवता को
भईय्या हमने
पीट पीट कर मारा
अहा! क्या सुन्दर देश हमारा
ये वो धरती
जहाँ रोज
हम विष की बेलें बोते
दो मुट्ठी चावल की खातिर
भूखे बच्चे रोते
सूरज को भी
सता रहा है
रोज यहाँ अँधियारा
अहा! क्या सुन्दर देश हमारा
गंगा जमुना
कावेरी को
हमने खूब निचोड़ा
जहर बचा है उसमे ज्यादा
पानी है अब थोड़ा
उन्हें साफ़
करने का पैसा
हमने खूब डकारा
अहा! क्या सुन्दर देश हमारा
राजा यहाँ
बोलते केवल
बस चुनाव की भाषा
हमको उनसे थी, भक्तों पर
कुछ लगाम की आशा
जुम्मन की
आँखों में
चमका, टूटा हुआ सितारा
अहा! क्या सुन्दर देश हमारा