भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ओ मेरे मोबाइल / प्रदीप शुक्ल
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:25, 14 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप शुक्ल |अनुवादक= |संग्रह=अम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
छूट गया हँसना बतियाना
भूल गया कहकहे लगाना
ओ मेरे मोबाइल !
तूने कैसा गज़ब किया
साथ साथ बैठे हैं सारे
हर कोई स्क्रीन निहारे
सुई फेंक सन्नाटा
आखिर कैसा खींच दिया
होठों होठों में मुस्काएँ
जल्दी जल्दी बटन दबाएँ
कई प्रिया से एक साथ ही
चैटिंग करें पिया
एक नज़र है जली गैस पर
एक नज़र स्क्रीन के ऊपर
अरे अरे वो टाइप कर रहा!
धड़का जाय जिया
ओ मेरे मोबाइल!
तूने कैसा गज़ब किया।