भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुनिए राजन / प्रदीप शुक्ल
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:40, 14 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप शुक्ल |अनुवादक= |संग्रह=अम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
ओ राजा जी!
मौन तोड़
कुछ तो बतियाओ
आँधी थी
जो उड़ा ले गई
राजमहल के कूड़ा घर को
ताज़ी हवा नई खुशबू है
ऐसा लगा मुझे पल भर को
फ़िर से वही
सड़ांध सुनो!
वापस मत लाओ
बदली नहीं
पुरानी चालें
बदले हैं केवल दरबारी
राजा जी को शिकन नहीं है
प्यादों की सेना है भारी
सुनिए राजन!
खेल सभी ये
बंद कराओ
सबक सीखिए
वरना आँधी तो
फिर फिर आयेगी
फिर से कूड़ा राजमहल का
अपने साथ लिए जायेगी
केवल
अपने मन की बातें
नहीं सुनाओ
ओ राजा जी!
मौन तोड़
कुछ तो बतियाओ।