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आदिवासिनी / विवेक निराला

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मैं जंगली लड़की हूँ
तुम लोगों की
कब्जे़ की लड़ाई में
बार-बार मात खाती हुई ।

सबका मालिक एक-
है आज भी
अपनी सारी अर्थच्छवियों में।
जब उस एक के खिलाफ़
हम सम्मिलित खड़े होते हैं
तो तुम हमें नक्सली कहते हो।
तुम एकल न्याय के नाम पर
सामूहिक नरसंहार करते हो।

तुम्हें हमारे जंगल चाहिए
तुम्हें हमारी ज़मीन चाहिए
तुम अपनी सभ्य भाषा में
हमारे शरीर का ही अनुवाद करते हो
चाहे वह जीवित हो या मृत।

अपनी सभ्यता में
हमारी कला, हमारी संस्कृति,
हमारी देह और हमारे देश पर

कब्ज़ा करने वालों से
मैं कहती हूँ -
"जान देबो, ज़मीन देबो ना"
नफ़रत की तमीज़ को
अपनी बोली से
तुम्हारी भाषा में रूपान्तरित करते हुए।