भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऐसा क्यों होता है / बृजेश नीरज

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:42, 14 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बृजेश नीरज |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऐसा क्यों होता है
रात का बुना सपना
खो जाता है
दिन के उजाले में

दिन की देह से टपकी
पसीने की हर बूँद
सोख लेती है
बंजर जमीन

मौसम के हर बदलाव के बाद
और मोटी-खुरदरी हो जाती है
हथेली की त्वचा

ऐसा क्यों होता है?