भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

महफ़िल महफ़िल मुस्काना तो पड़ता है / कुमार विश्वास

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:42, 14 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार विश्वास |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

महफ़िल महफ़िल मुस्काना तो पड़ता है
खुद ही खुद को समझाना तो पड़ता है

उनकी आँखों से होकर दिल तक जाना
रस्ते में ये मैखाना तो पडता हैं

तुमको पाने की चाहत में ख़तम हुए
इश्क में इतना जुरमाना तो पड़ता हैं