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रची उषा ने ऋचा दिवा की / केदारनाथ अग्रवाल
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रची उषा ने ऋचा दिवा की
- निशा सिरानी;
सुख के आमुख खिले कमल-मुख,
- पुलके प्रानी;
रूप अनूप धूप के धन के
- खिले मुकुल से,
महिमा हुई मही की गोचर,
- रज की रोचक;
भूचर के स्वर, खेचर के पर
- भास्वर हुलसे:
जल में जगी ज्योति की रम्भा-
- मल की मोचक ।