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आई हरि जु की पौढी / ब्रजभाषा

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

आई हरि जु की पौढी, बधाए लाई मालनिया।
आई हरि जु की पौढी, बधाए लाई मालनिया॥
हरे –हरे गोबर अँगना लिपाए, मालनिया,
मोतियन चौक पुराए, सुघडपति मालनिया।
कुम्भ कलश अमरत भर लाई, मालनिया,
अमुवा की डार झकोरी, सुघडपति मालनिया।
इन चौकन रानी के ईसरदासजी (घर के पुरुष सदस्यों के नाम) बैठे मालनिया,
संग सजन की जाई, सुघडपति मालनिया।
बहन भानजी करें आरतो, मालनिया,
झगडत अपनो नेग, सुघड्पति मालनिया।
देत असीस चलीं घर-घर को, मालनिया,
जिएं तेरे कुवँर कन्हाई, सुघडपति मालनिया।
रहे तेरो अमर सुहाग, सुघडपति मालनिया।
आई हरि जु की पौढी, बधाए लाई मालनिया॥