भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मोहब्बत / विजय कुमार सप्पत्ति

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:28, 15 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय कुमार सप्पत्ति |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम अपने हाथो की मेहँदी में
मेरा नाम लिखती थी और
मैं अपनी नज्मो में तुझे पुकारता था जानां;

लेकिन मोहब्बत की बाते अक्सर किताबी होती है
जिनके अक्षर
वक्त की आग में जल जाते है
किस्मत की दरिया में बह जाते है;

तेरे हाथो की मेंहदी से मेरा नाम मिट गया
लेकिन मुझे तेरी मोहब्बत की कसम,
मैं अपने नज्मो से तुझे जाने न दूंगा...

ये मेरी मोहब्बत है जानां!!