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सब मालूम है मुझे / अर्चना कुमारी

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खूब समझती हूँ
चालाकियाँ
मक्कारी
मुझ पर ऊँगलियाँ उठाने वालों
गिनना स्याह अंधेरों में
गुनाह अपने
मेरा शफ्फाक दामन
तब भी दुआओं की सदा लेकर
रौशनी में लाएगा तुझे
ये गर्दिशों का दौर है
और तुफान जरा तेज
आँखों में भर गयी कोस भर की धूल
वक्त बीत रहा है परिचय का
धूँध के छँटते ही
मेरा साया नहीं होगा
बस धूप होगी
नीला आसमान होगा...!!