भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शान्ति आरो शक्ति / भुवनेश्वर सिंह भुवन

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:32, 22 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भुवनेश्वर सिंह भुवन |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शान्ति! महादेवी!
एक हाथॅ में ज्ञानॅ-विज्ञानॅ के चकाचौंध,
साहित्य के ब्रह्मानन्द, संगीतॅ के नाद ब्रह्म,
दर्शनॅ के जोत अमन्द!

दोसरा में कुबेरॅ के भंडार, हीरा-मोती अपार,
इन्द्रॅ के ऐश्वर्य, नन्दन के बहार!
स्वेत-बसना, गज-गामिनी, नस-नस में दामिनी;
गुलाबॅ के पंखुड़ी सें भी सुकुमार;
झुकी-झुकी जाय केश-भार!

संतोष-साम्राज्य दसो-दीश;
देखथैं श्रद्धावनत शीश,
ठोरॅ पर पागल हँसी, भागै सॅ कोस रीस-खीस!
पानी सन निश्छल तरल,
सिसकीं हवा केॅ करी जाय चंचल;
छोटखौ ठिलौरी मचाय जाय हलचल,
प्राण उड़ी जाय सुनी हो-हल्ला कोलाहल।

सबकुछ, लेकिन-
शान्ति बिना शक्ति छै असहाय,
जेना, बिन रखबारॅ के जंगल में गाय,
बिना जोगलॅ खेत-बकरी चरी जाय,
बिन झाड़लॅ पुस्तक-दीमक लगी जाय,
जेना गरीबॅ के विधवा-सबके भौजाय,
जेकरा नै माय-बाप, जेकरा नै भाय।