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सबके एक जिनिगिया राम / भुवनेश्वर सिंह भुवन
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अपना जिनगी सें नापै छी,
सबके एक जिनिगिया राम।
चुप-चुप डोलै मलय हिंडोला,
रंग उड़ाबै पूरब टोला,
मस्जिद अजाँ, राम-घर मन्दिर,
सड़क पुकारै बम-बम भोला।
प्राण-प्राण मस्ती अंगड़ाबै
विहंसै लाल फुनगिया राम।
फूँकै प्राण पपीहा, कोयल,
सुरुज किरण अँखुवा दै कोमल,
अगराबै छै नन्हा बादल,
आँजै छै ऊषा ने काजल।
सतरंगी डोली पर झूलै,
मन के लाख लहरिया राम।
चकनाचूर महल सपना के,
धरती पर जों डेग बढ़ाबौं,
ऊपर धोखा हरियाली के,
भीतर भीषण काँटा पाबौं।
मन के मंजिल दूर नजर सें,
सगरो बन्द डगरिया राम।