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सलीब-ए-उल्फत उठा रहे हैं / पल्लवी मिश्रा
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सलीब-ए-उल्फत उठा रहे हैं,
अहद-ए-वफा हम निभा रहे हैं।
जख़्म जिसने दिया है हमको,
जख़्म उसी को दिखा रहे हैं।
‘फुल’ - जो काँटों के दरम्याँ है,
मुझे भी हँसना सिखा रहे हैं।
मंज़िलों का पता नहीं है,
कदम तो फिर भी बढ़ा रहे हैं।
कहानी में दें मोड़ कैसा?
वो लिख रहे हैं, मिटा रहे हैं।
माना नहीं वो बेवफा हैं,
लेकिन क्या बावफा रहे हैं?
कहीं न पढ़ ले निगाह दुनिया,
नज़र सभी से चुरा रहे हैं।