मंगलाचरण / अंगेश कर्ण / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'
कुलदेवी हे अंगदेश के
द्विभुज वाली आदि भवानी,
पीठी पर सब अस्त्र विराजौं
मुँह पर गंगा केरोॅ पानी।
जेकरे बेटा ऋषिवर शृंगी
दुर्वासा, जहु रं मुनियो,
ऋषि वशिष्ठो, अष्टावक्रो
परशुराम रं पूतो गुनियो।
उद्दालक, आ ऋषि विभांडक
अंगदेश के पूत तपस्वी,
यही अंग के माथोॅ ऊँच्चोॅ
पावी वासू पूज्य यशस्वी।
जेकरोॅ बेटी गंगा-कोशी
हेनोॅ निर्मल-तन सें, मन सें,
चन्दनबाला आरो बिहुला
पूजित जे दुनिया भर जन सें।
जेकरे बेटी रहै विशाखा
सुभदांगी संग श्यामा हेनोॅ,
सोचोॅ कत्तेॅ पुण्य भूमि ई
अंगभूमि ई छेकै केन्होॅ!
वही अंग के बलि पुत्रोॅ केॅ
रोमपाद केॅ, नमस्कार छै,
महाबली, अतिरथी, कर्णोॅ केॅ
नमस्कार शत कोटि बार छै।
यश कविता के, कवि कोविद के
रखियोॅ गोरखनाथ तहूँ भी,?
जन्मभूमि नै अंग भुलैयोॅ
कोय देश में रही कहूँ भी।
अशीष देॅ कि यही माटी के
गुण गाबी केॅ यश केॅ पाबौं,
कत्तो गुण केॅ गैतें रहियौं
मोॅन भरेॅ नै, कभी अघाबौं।