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आठमोॅ सर्ग / अंगेश कर्ण / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

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महाप्रलय के दृश्य खड़ा छै
युद्धभूमि में चारो ओरी,
खुश छै बैरी इक दुसरा केॅ
लहू-खून में बोरी-बोरी।

दोनों ओरी के सेना पर
काल चढ़ी केॅ जेना नाँचै,
के कत्तेॅ छै अतिरथी संगे
महारथी-ई सब केॅ जाँचै।

परिघ, शूल, मूसल आ मुगदर
गदा, पास, नाराच, बाण सब,
छूटै बरखा के बूंदे रं
मृत्यु घूमै पीवी आसव।

तोमर, फरसा, चक्र विलक्षण
तलवारोॅ-भालाओं के रण,
रुधिर, मांस, अस्थि रोॅ बोहोॅ
महाकाल के नाँच क्षणे क्षण।

छूटै जखनी वाण कर्ण रोॅ
महामृत्यु केॅ लेनें साथें,
खींची लेॅ कत्तेॅ के जाने
एक निमिष में, एक्के हाथें।

प्राणोॅ केॅ संकट में पावी
पाण्डव-सेना विचलित लागै,
प्राण बचै के कोनो रस्ता
जन्नै पाबै, हुन्नै भागै।

देखै छै अर्जुन, सहदेवो
सेना में छै अजब खलबली,
भागी केॅ आबी रहलोॅ छै
बड़का-बड़का वीर भुजबली।

धर्मराज छै देखी व्याकुल
अपनोॅ सेना के गति पुरतेॅ,
जोन किसिम सें आगू होय छै
वहेॅ किसिम सें पीछू घुरतेॅ।

घोर विपद पाण्डव पर देखी
बोली उठलै कृष्ण हठाते-
”अर्जुन, मुश्किल बड़ी बात छै
कर्ण हरैबोॅ, बाते-बाते।“

”सूर्यपुत्र ई अति बलशाली
महामंत्र ई, महासिद्धि ई,
अतिरथिये नै, परमवीर भी
मन रं चंचल, धीर बुद्धि ई।“

”जेकरोॅ डर कालो तक मानै
ऊ कर्णोॅ केॅ यहाँ हरैबोॅ,
ई तेॅ होलै होने ही बस
सूप डंगाय केॅ ऊँट डरैबोॅ।“

”अर्जुन, ई जे सम्मुख यौद्धा
महारथी में अतिरथी समझोॅ
चलतें-बुलतें सूर्य छेकै ई
अतिरथियो सें बैसी समझोॅ।“

”देखथैं छौ केना केॅ रौंदै
पाण्डव-सेना केॅ घेरी केॅ,
भागी रहलोॅ हमरोॅ सेना
कर्णोॅ केॅ ऐतें हेरी केॅ।“

”अखनी ओकरोॅ सम्मुख होवोॅ
देवोॅ छै कालोॅ केॅ नेतोॅ,
बचिये-बचिये केॅ चलना छै
सावधान, अर्जुन तों चेतोॅ!“

”आरो अगर विजय चाहै छोॅ
तेॅ बुद्धि के काम करोॅ ई,
घटोत्कच केॅ तुरत बुलाबोॅ
ऐलोॅ संकट केन्है हरोॅ ई।“

”अर्जुन, ई संकट केॅ सचमुच
घटोत्कच ही टारेॅ पारेॅ,
मायावी छै, महाबली भी
कर्ण वहीं सें हारेॅ पारेॅ।“

”बिना सोच-शंका के आबेॅ
घटोत्कच कॅे हाँक लगाबोॅ,
प्राण हरी रहलोॅ छौं कर्णे
अपनोॅ दल के प्राण बचाबोॅ।“

”नै तेॅ जीत ई निश्चय जैतौं
कौरव-दल में कर्णे कारण“
विपदा जे सम्मुख छौं ठाड़ोॅ
पहिलें ओकरोॅ करोॅ निवारण।“

संकट केॅ तौली-भाँपी केॅ
आखिर अर्जुन मानी गेलै,
जरियो टा चूकोॅ के फल केॅ
पलक मूंदतैं जानी गेलै।

आरो तभिये युद्धभूमि में
एक असुर-विकराल, भयानक,
परगट होलै मेघे रं ही
बदली गेलै दृश्य अचानक।

ऊ मायावी जन्नें धाबै
हुन्नै मृत्यु विकरलोॅ दौड़े,
कत्तो वीर रहौ बलशाली
ओकरोॅ हड्डी-छाती तोड़ै।

कौरव-दल में बड़ी खलबली
कर्णो के चिन्ता माथोॅ पर,
देखी केॅ ई जीत दूर छै
अभी-अभी ऐलोॅ हाथोॅ पर।

कत्तो छोड़ै किसिम-किसिम के
कर्ण बाण केॅ-सब्भे बेरथ,
सोचै-”बाघ नै भागेॅ पारेॅ
खाली करला सें ही -हट, हट।“

”हिन्नें हमरोॅ सेना केरोॅ
सब्भे टा साहस छै लचपच,
हुन्नें वैं जेकरा भी पकड़ै
मूली-गाजर नाँखी कच-कच।“

”हाय केना मायावी मरतै
ई जादू-टोना के राकस,
एकरा कौनें मारेॅ पारेॅ
हमरो कोय चलै नैं जों बस।“

”कभी पहाड़े रं लुढकै छै
ठनका रं ठनकै गरजै छै,
हेना में केना ई सोचौं
ई युद्धोॅ में हमरे जै छै।“

”हाय, नियति सबसें बलशाली
बरियो सें बरियो कालोॅ सें,
घेरी राखै भाग मनुख के
आपनोॅ बिजली रं चालोॅ सें।“

”कत्तो चाल चलोॅ सोची केॅ
पर भागोॅ के अलगे पासा,
कत्तेॅ खैर मनाबै, कब तक
मलकाटोॅ सें बांधलोॅ सांसा।“

”अभी-अभी तेॅ यही लगै नी
बल के मुट्ठी में भागो छै,
अभी-अभी बस यहेॅ लगै छै
चन्दन के भीतर आगो छै।“

जखनी सोची रहलोॅ छेलै
कर्ण बहुत्ते कुछ टूटी केॅ,
तभियै ऐलै असुर अलायुद्ध
एक किरिन आशा छूटी केॅ।

झपटी पड़लै घटोत्कच पर
जेना बाज कबूतर पर ही,
जान बचाय केॅ उड़लै तखनी
घटोत्कच। बचलै पर छाँही।

अलायुधो पीछू-पीछू सें
उड़लै माया रूप धरी केॅ,
कौरव-दल केॅ हर्ष्ज्ञित करने
पाण्डव केॅ भयभीत करी केॅ।

कौरव केरोॅ आस बिलैलै
अलायुधोॅ के मरथैं ऊपर,
गिरतै धरती पर जेना ही
ओकरोॅ ठठरी, काया-ठट्ठर।

परगट होलै तखनी फेनू
घटोत्कच करलेॅ हुँकारी,
लागै सौंसे कौरव दल केॅ
पल में ही देतै संहारी।

ई देखी केॅ हौलदिल कर्णो
कोय बचै के पंथ कहाँ छै,
अश्व कहीं छै छटपट छटपट
आरो देखोॅ रंथ कहाँ छै।

बड़ी दीन रं टूटी-टाटी
बैजन्ती साधलकै कर्णे,
गेलै जे आकाशे दिश ही
घटोत्कच के प्राणें हरनें।

ई देखी केॅ कौरव-दल में
ज्वार खुशी के सौ-सौ उठलै,
बेमत होय केॅ एक्के साथें
पाण्डव सेना पर सब टुटलै

घोर दुखोॅ में धर्मराज छै
पर कृष्णोॅ से सुख नै संभरै,
हुन्नें कर्णोॅ केरोॅ मन में
रही-रही असगुन ठो गंभरै।

”आबेॅ की संभव छै केन्होॅ
अर्जुन केॅ जीते जी धरबोॅ,
लागै बाजी पलटी गेलै
हमरे हाथोॅ सें ही मरबोॅ।“

”बैजयन्ती के रहतें हम्में
नैं अर्जुन केॅ मारेॅ सकलौं,
कौनी मोहोॅ में आवी केॅ
सम्मुख आवी-आवी रुकलौं।

”मोह दुखोॅ के कारण छेकै
मोह विपत्ति केॅ लानै छै,
मोह नाश के संगी-साथी
जे बुधियारोॅ, वैं जानै छै।“

”आबेॅ तेॅ बस लड़ौं, यही सब
जे होना होतै, ऊ होतै,
धारोॅ सें बाहर होना छै
धारें हमरा कत्तो गोतै।“

”कुछ तेॅ बात जरूरे हेनोॅ
फिरी गेलै हमरोॅ सब मतिये,
जों बुद्धि कॅ रखतौं वश में
भला पुरतियै हेने गतिये?“

”कै दाफी तेफ यही सोची केॅ
अर्जुन के तेॅ बाते की छै,
कृष्णो केॅ बान्ही लेना छै
बैरी बीच यहेॅ मन बीछै।“

”मजकि बुद्धि ठीक समय पर
कहाँ बिलावै कुछ नै जानौं,
यै में खेल नियति के नै छै
बात केन्हौं केॅ ई नै मानौं।“

”ई तेॅ हम्मू ही जानै छौं
प्राणोॅ रं अर्जुन कृष्णोॅ लेॅ,
केकरोॅ-केकरोॅ प्राण नै लेलकै
बस अर्जुन के ही प्राणोॅ लेॅ।“

”जरासन्ध, शिशुपाल, हिडम्बो
किरमीरो, बक, अलायुधो केॅ,
के मरवैलेॅ छै? कृष्णे नी
बस अर्जुन लेॅ, कोय नै खोकेॅ।“

”बैजयन्ती के छुटथैं की रं
कृष्ण खुशी सें केन्होॅ हाँफै,
वैजयन्ती के रहतें के नै
धरती की, सरंगो तक काँपै।“

”की सच्चे में भाग्य विरोधी
या विधि जाँचै हमरोॅ ताकत,
जेकरा विधि लेॅ सहबोॅ मुश्किल
हमरा पर डालै ऊ आफत।“

”माय, कवच-कुण्डल वैजन्ती
की-की नै हमरा सें छुटलै,
काँचोॅ केरोॅ अजबे पुतला
हाथोॅ में रखथैं ही टुटलै।“

”एक अकेलोॅ प्रण ही हमरोॅ
हमरोॅ संगोॅ में लगलोॅ छै,
बाकी तेॅ विपरीते बनलोॅ
बुद्धि तक हमरोॅ ठगलोॅ छै।“

”कोय बात नै, कर्मवीर केॅ
एक भरोसोॅ कर्मे के नी,
पत्थर पर मूर्त्ति केॅ खींचै
ऊपर-नीचे चलतें छै नी।“

”कत्तो छै विपरीत भाग्य ई
कत्तो छै विधि वाम सटी केॅ,
अंगदेस के पौरुष-कीर्ति
करथैं छै कुछ बात हटी केॅ।“

”फेनू अभी कहाँ घटलोॅ छै
तरकस में तीरोॅ के गतियो,
अभियो नै भोतोॅ पड़लोॅ छै
तलवारो-तोमर रोॅ मतियो।“

”हारी-थकी केॅ बैठी जैबोॅ
माता दूध लजैबोॅ होतै,
ई करनी पर अंगदेस रोॅ
कुलदेवी कल्पो तांय रोलै।“

”बड़ी भाग सें जनम मिलै छै
अंग देश ई माँटी पर,
जे माँटी मरथैं ही ऐलोॅ
शौर्य-दान के परिपाटी पर।“

”फेनू कैन्हें विचलित हम्में
ई विषाद कैन्हें घेरै छै,
सौ संकट के घोर घड़ी में
मोहोॅ के जादू फेरै छै।“

”यही मोह नें हार कर्ण के
युद्धभूमि में लिखतें ऐलै,
आरो तेॅ सब बात अलग छै
केकरोॅ की-की यहाँ नसैलै।“

”आबेॅ हमरा असकल्ले ही
अंग-धर्म केॅ धारेॅ होतै,
हम्में कालोॅ केॅ गोतौं कि
आबेॅ हमरा कालैं गोतै।“

ई सोची राधेय उठी केॅ
तानी लेलकै धनुष-वाण कॅ,
ई देखी कोय गदगद मन सें।
कहीं थरथरी लगै प्राण केॅ।“