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दो / बिसुआ: फगुआ / सान्त्वना साह

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चैत हे सखी हरियर सुगवा, शीतल ऐंगन मड़राय हे
डारी-डारी भैरव नाथ जलवा लगावै, पाते-पाते सुगा उड़ी जाय हे

बैसाख हे सखी घामेॅ घमौरिया ऊख-बिा करै छी कल जोर हे
बिंदिया बुलकिया सेॅ, करै जे बतिया, मतिया मिलैतेॅ होलै भोर हे।

जेठ हे सखी घनेॅ सघन वनेॅ, जट्टा बड़ो के शोभा पाय हे
लाले-लाले फल फूलै, पत्ता झकोरा मेॅ, ठंडा छाहीं सुख दाय हे।

अषाढ़ हे सखी खिलै कमल जल, भौंरा करै गुंजार हे
तितली जे उड़ी-उड़ी चूमै परागो केॅ मक्खी शहद के हजार हे।

सावन हे सखी पिन्ही पायलिया, छमकै छै आरी क्यारी बाड़ी हे
सोलह सउनमा, बीतलै ऐंगनमा, बगिया फुलबगिया झाड़ी हे।

भादो हे सखी अष्टकमल दल, कदली कसेली फल पान हे
खीरा मन्दार रूपेॅ, मथी पंचामृत, खोजै अनन्त भगवान हे।

आसिन हे सखी बरसा विदाय करी, सरदी सेॅ धरती सरदाय हे
तरपन करी केॅ सुजन, बरसा सेॅ अरज करै, आनिहो अषाढ़ घुराय हे।

कातिक हे सखी काली कपाली, खप्पर वाली मुंडमाली हे
चार भुजा वाली, जिह्वा निकाली, भक्ता केॅ करै शक्तिशाली हे।

अगहन हे सखी सीता मंसूरी, पातन जया शोभा धान हे
कटलैं खरीफ होतै, रब्बी तैयारी, ताबा केतारी रस रान हे।

पूस हे सखी शीत बरसै, कुकरी लगावै पूरे रात हे
रही-रही कुहकै, प्रीत कुँवारी, थर-थर-थर काँपै गात हे।

माघ से सखी मंजरैलै बगिया, आबी जे गेलै मधु मास हे
घर-घर बाजै, ढोलक मंजीरा, झोली अबीरोॅ के पास हे।