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पाँच / बिसुआ: फगुआ / सान्त्वना साह

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चैत हे सखी नीमिया के डार चढ़ी, खेलै झूमर शीतल माय हे
गाछ परासो तर, ओठंगी जीरावै, जन्मै अशोका तर जाय हे।

बैसाख हे सखी अंगिया चुनरिया, बतिया के ओर न छोर हे
उगलै भोरूकवा, भागलै अन्हरिया, बीती गेलै रतिया इंजोर हे।

जेठ हे सखी धरती जे तबै धीपै, ठोठा में फुटै छै तरास हे
पश्चिम आ उत्तर गरजै चमकै बिजुरिया, बरसा के बुझी राखो आस हे।

अषाढ़ हे सखी पुरवा झकोरा, अँचरा उड़ाय भरमाय हे
सिहकै जे अंगिया, टहकै चुनरिया, बुलकी मुनरिया लजाय हे।

सावन हे सखी मनुऐलो मनमा, रसी रसी भीजै पोरे पोर हे
लागलै रोपिनिया, साँझे विहनिया, चकवा बिन तरसै चकोर हे।

भादो हे सखी सिंहो के गरमी सेॅ, पाकै जे गाछी में ताड़ हे
करमा जे पूजै बहिन, ताड़ो पर हाथ फेरै, भैया के माथो दुलार हे।

आसिन हे सखी कान्हा जे रास रची, गौरा पति केॅ भरमाय हे
बाजै जे प्रेम मुरलिया, ससरै रेशम के सड़िया, लाजो सेॅ भोला कठुआय हे।

कातिक हे सखी पूजै भवानी, खड़ग खप्पर धारिणी
चण्डी रणचण्डी, संहारकारिणी, काली कपाली मुण्डमालिनी।

अगहन हे सखी बड़का एतवार करी, सुरजो केॅ अरगो के ढार हे
हथवा उठाय दोनों, देबै अरगिया मासेॅ बैसाख निस्तार हे।

पूस हे सखी नाक-कान छेदी-छेदी, नथिया कनौसी बेसाय हे
टहकै जे रही-रही, ठुनकै रूनझुनिया, घस्सी केॅचन्दन लगाय हे।

माघ हे सखी दही चूड़ा लडुवा, तिलवा तिलकतरी सौगात हे
तितखिचड़ी रसिया खाये मनबसिया, तिलकूट तिलमंजरी के हाथ हे।

फागुन हे सखी ललहौनो बगिया, डारी-डोरी खिलै फूल झार हे
गोटा संग बूटा झूमै, बाली संग माली, ढोली ढम होली धमार हे।