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कहीं कुछ हो गया है / जयप्रकाश मानस
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(एक जवान मजदूर की अकाल मृत्यु पर)
जस का तस
चिड़ियों के झुरमुट से बोल उठना
बूढ़ी औरतों का झुलझुलहा स्नान
प्रभाती की लय में गाँव
छानी-छानी मुस्कराहट सूरुजनारायण की
आँगन बुहारती बेटियों का उल्लास
बछिया कोबीच-बीच पिलाकर गोरस निथारना
दिशाओं मे उस पार तक
उपस्थित होती घंटी-घड़ियाल की गूँज
पानखाई तराई से बूँ-बूँद जलसमेटती
पनिहारिनों में ‘रात्रि कथा वाचन’
अजीब सी उदासी है सबके भीतर
फिर भी
कहीं कुछ हो गया है
लोग फफक-फफक कर बताते हैं
पूछने पर
एक भलामानुस
माटी के लिए दिन-रात खटता था जो
माटी में खो गया यक-ब-यक