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सुघड़ता / जयप्रकाश मानस

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सिर्फ़

नशीले फूलों

कड़वे फलों

ज़हरीली पत्तियों

धोखेबाज टहनियों को

काट-छाँट कर नहीं रह सकते निरापद

पैठो ज़रा और भीतर

सुघड़ता के लिए

विचारों की जड़

गहरी धँसी रहती है

मस्तिष्क की कन्हारी मिट्टी में