भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुघड़ता / जयप्रकाश मानस

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:41, 3 मार्च 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयप्रकाश मानस |संग्रह=होना ही चाहिए आंगन / जयप्रकाश मा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सिर्फ़

नशीले फूलों

कड़वे फलों

ज़हरीली पत्तियों

धोखेबाज टहनियों को

काट-छाँट कर नहीं रह सकते निरापद

पैठो ज़रा और भीतर

सुघड़ता के लिए

विचारों की जड़

गहरी धँसी रहती है

मस्तिष्क की कन्हारी मिट्टी में