भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बेटी के बिदाय / पतझड़ / श्रीउमेश

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:46, 2 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीउमेश |अनुवादक= |संग्रह=पतझड़ /...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आह भरी आबैछेॅ जखनी याद पुरानोॅ आबै छै।
पिछला दिन के मधुर कहानी कौनें आज सुनाबै छै॥
बेटी के छै आज बिदाई कत्तेॅ माया लानै छै॥
माय-बाप के नाता टुटलै, हुकरी-हुकरी कानै छै॥
उन्नेॅ महिला मंडल सें समदन के उठलै गीत प्रगाढ़।
इन्नेॅ छाती फाटै छै करुना के उमड़ी गेलै बाढ़॥
एकरो डोली हमरै छाया तर आबी केॅ रुकलोॅ छै।
यै करुना के प्रबल बेग में हमरो डाली झुकलोॅ छै॥
लेकिन यै पतझड़ में नैं डोली नैं बोॅर बराती छै।
जेकरा से हुकरी-हुकरी केॅ फाटै हमरोॅ छाती छै॥