भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
डोमडोमिन / पतझड़ / श्रीउमेश
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:47, 2 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीउमेश |अनुवादक= |संग्रह=पतझड़ /...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सुपती-मौनीसूप-चंगेरा-डलिया बेची केॅ ऐलै।
कल्लू डोम-सोहगिया डोमिन यही गाछ तर ठन्ढैलै॥
दोनों ताड़ी पीबी केॅ छै, टर्र निसा में झूमै छै।
कखनू कल्लु डोमिनिया केॅ बड़ा प्यार सें चूमै छै॥
कभी प्यार, फटकार कभीं छै, कखनू रोब जमावै छै।
कभीं सोहगिया रूसै छै तेॅ, कल्लू खूब मनावै छै॥
गोड़ धरी केॅ कल्लू कहलक, चलें सोहागो, मानें बात।
तोहरे किरिया कुछ नैं कहबौ, राखी ले हमरोॅ जी-जात॥
हँलले-हँसले उठलै दोनों, आभियों छेलै नसा-खुमार।
टगलोॅ-झुकलोॅ गेलोॅ दोनों घरोॅ तरफ नै छै दुख भार॥
साँय-बहू के कत्तेॅ झगड़ा-झाँटीं हम्में देखै छी।
प्यार-मार-फटकार तलक देखी केॅ मन संतोखै छी॥