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गोछी / पतझड़ / श्रीउमेश

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भरी आँख काजर भोग्गारी ननकू गोछी लेलेॅ छै।
बनिहारोॅ केॅ फोंक-बतासा परसादोॅ में देलेॅ छै॥
कादोॅ भेलै खेतोॅ में, रोपनी ऐली दौड़ी-दौड़ी।
गाँथै छै गोछी खेतोॅ में घोघी केॅ ओढ़ी-ओढ़ी॥
भादो के बरसा मंे रोपनी के जे गीत उभरलोॅ छै।
बेंगोॅ के टर-टर में वै गीतोॅ के रंग बदललोॅ छै॥
बरसा के ऊ सुखद दृस्य आजो आँखी तर घूमै छै।
सरङोॅ के पानीं धरती केॅ, बड़ी प्रेम सें चूमै छै॥
सोनों उगत धरती सें, बेसी नै चार महीना बाद।
लछमी खेतोॅ में लोटी-लोटी केॅ देतै आसिरबाद॥