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दुर्गाकाली पूजा के तोॅर तमासा / पतझड़ / श्रीउमेश

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दुर्गा माय के पूजा ऐलै घर-घर छै कत्तेॅ उत्साह।
फूल जुटावै के देखोॅ, पहर राती से खूब उछाह॥
कलसोॅ बैठै छै सबकन रे, सबकन होतै चन्डो-पाठ।
पांड़े जी कन, पाठा कटतै, देखै गड़लोॅ छै मलकाठ॥
मोधीपुर जैतै देखैलै, होतै वहाँ अखाड़ा भाय।
चुनमा लडतोॅ मन्नूसं, हुनकोॅ सेखो कहलोॅ नै जाय॥
बाबा के कान्हा पर बैठी केॅ सनकिरबा ऐलोॅ छै।
देवी दुरगा देखतै, ऊ पिपरा जाय लै उमतैलोॅ छै॥
यै मेला में पुतरी किनतै, हुक्कावाला बुढ़वा के।
आरो किनतोॅ बाबा, ई मनसुवा छै सनकिरबा के॥
दुरगा केॅ नैवेद्य चढ़त, दोनाभरी बतासा वें।
कठ घोड़बा पर चढ़तोॅ, करतोॅ कत्तेॅ नया तमासा वें॥
गैसोॅ के बैलून उड़ैतै, चरखी घुरतै सर-सर-सर।
घुरी-फिरी कै यै ठाँ ऐतोॅ सीधा करतोॅ गोड़-कमर॥
दुरगा, काली, लक्ष्मी-पूजा में महक धुमना के धूप।
छठ परबोॅ में साजै छै, धरनीं सुरुजोॅ के भरलोॅ सूप॥
सुखराती में कत्तेॅ-कत्तेॅ जारै छै दीया-बाती।
सोॅन सनाठी लेॅ केॅ सभ्भे, खेलै छै हुक्का पाती॥
हमरा गाछी पर भगजोगनी, रोज मनावै छै सुखरात।
सरङोॅ के तारा जौनें, ठोकी ताल करै छै बात॥