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बहुत कुछ है अपनी जगह / जयप्रकाश मानस

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समय अभी शेष है

रास्ते भी यहीं कहीं

भूले नहीं हैं पखेरु उड़ान

ठूँठ हुए पेड़ में हरेपन की संभावना भी

नमक कम हुआ कहाँ पसीने में

नहीं दीखती हुई को देख सकती है आँखे

राख के नीचे दबी है आग

बहुत कुछ नहीं होते हुए भी

है बहुत कुछ अपनी जगह

फ़िलहाल

मैं छोड़ नहीं रहा दुनिया

और गहरे पैठ जाना चाहता हूँ जीवन में