कनियांयन / पतझड़ / श्रीउमेश
हरखू के गौना होलोॅ छै डोली यहीं उतरलोॅ छै।
ढोलिया आरो कहरिया सबटा दम मारै लेॅ रुकलोॅ छै
डोली सें उतरी केॅ कनियाँय्नों छाया तर आबै छै।
दुलहा पर जों नजर पड़ै छै; घुँघटा तर मुस्काबै छै॥
नैहरा के दादी-भौजी के छटलोॅ जाय छै लाड़-दुलार।
आँखी तर छै सास-ननद-गोतनी के मिट्ठो-मिट्ठ प्यार।
केतना आसा, केतना करुना केतना छै बिस्वास अपार।
जेकरा हाथॉे में देॅ दै छै अपना जीवन के पतवार॥
आबेॅ यै ठुट्ठा गाछी तर, कोय कथीलेॅ ऐतोॅ भाय।
जहाँ सम्पादा-वहीं बन्धु छै सुख के साधन, सहज उपाय॥
दुक्खोॅ में साथी नै होय छै, इस्ट मित्र के खोला पर।
अपन्हौ छायां साथ नै दै छै अन्धकार के होला पर॥
कत्तेॅ बेटी अरु पुतहूओॅ के सुनल छी प्रेमालाप।
केतना बादा, केतना किरिया, केतना मिलन, बिरह-सन्ताप॥
कत्तेॅ छौड़ा-छौड़ी के सुनलेॅ छी हम्में कार्य-क्रम।
कत्तेॅ बेर यहीं होलोॅ छेॅ मुक्त जवानी के संगम॥