भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पंचैतो / पतझड़ / श्रीउमेश

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:10, 2 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीउमेश |अनुवादक= |संग्रह=पतझड़ /...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

टहलू मड़रोॅ के गाछी केॅ, सुरजी काटी लेलेॅ छै।
जोर-जबरदस्ती करलेॅ छै, सब केॅ ये दुख देलेॅ छै॥
ओकरे पंचेतो बैठलोॅ छै, यै गाछी के छाया में।
सुरजीं पंचोॅ केॅ भङ्ठैलेॅ छै पेॅसा के माया में॥
वै गाछी पर पंचें दै छै सुरजीं मड़रोॅ केॅ अधिकार।
ई परपंच सुनो केॅ टहलू ठोकै छेॅ आपनों कप्पार॥
कौनें कहलेॅ छै ‘पंचोॅ के मूहों पर परमेसर छै?
पंचें परपंचे करथैं छै, कहाँ न्याय रत्ती भर छै?
उलटे-टहलू मड़रोॅ केॅ जुर्बाना होलै तीन पचीस।
करजा लेॅ केॅ टहलू देलकै, आज कहाँ छोॅ हे जगदीस?
पचें तेॅ परपंच करै छै ओकरोॅ दुनियाँ छै रंगीन।
बाप-पूत छै पंच जहाँ, बरदा के दाम रुपैया तीन॥