भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़ौफ़ / जयप्रकाश मानस

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:37, 3 मार्च 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयप्रकाश मानस |संग्रह=होना ही चाहिए आंगन / जयप्रकाश मा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जाने-पहचाने पेड़ से

फल के बजाय टपक पड़ता है बम

काक-भगोड़ा राक्षस से कहीं ज़्यादा भयानक


अपना ही साया पीछा करता दीखता

किसी पागल हत्यारे की तरह

नर्म सपनों को रौंद-रौंद जाती है कुशंकाएँ

वालहैंगिंग की बिल्ली तब्दील होने लगती है बाघ में


इसके बावजूद

दूर-दूर तक नहीं होता कोई शत्रु

वही आदमी मरने लगता है

जब ख़ौफ समा जाता है मन में