भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देसप्रेमु का पाठु फ़लाने / प्रदीप शुक्ल

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:18, 4 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप शुक्ल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

समझाईति है तुमका, ना
एतना उत्पातु करौ
देसप्रेमु का पाठु फलाने
फिर ते यादि करौ

ऊपर ते सब जय जय ब्वालैं
अन्दर खूनु पियैं
अईसन मा ई भारत माता
कब तक भला जियैं
ई च्वारन का मारौ पहिले
ताल ठोंकि सम्भरौ

' टुकड़ा टुकड़ा करिबे यहिके '
जो ब्वालै यहु नारा
नटई ते तुम पकरौ वहिका
दई देव देसु निकारा
लेकिन बात सुनौ अउरिनु की
थ्वारा धीरु धरौ

बेमतलब ना रागु अलापौ
देसप्रेमु का भइय्या
रामदीन द्याखौ भूखा है
भूखी वहिकी गईय्या
रुपिया चढ़ा जाय फ़ुनगी
पहिले वहिका पकरौ

एतना बड़ा देसु, दुई नारन
ते यहु टूटि न जाई
का चाहति हौ, देस भक्ति
हम माथे पर लिखवाई?
खुलि जाई जो यह जबान
ना पईहौ अपन घरौ

समझाईति है तुमका ना
एतना उत्पातु करौ
देसप्रेमु का पाठु फलाने
फिर ते यादि करौ