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घोड़ा / श्रीनाथ सिंह
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चाचा की यह छड़ी नहीं है,
है यह मेरा घोड़ा।
जी चाहे तो तुम भी इस पर,
चढ़ सकते हो थोड़ा।
भूसा चारा दाना पानी,
एक न पीता खाता।
छोड़ मदरसा और गाँव में,
सभी जगह है जाता।
चाची को जब लखता है,
तब है अति दौड़ लगाता।
पर चाचा को देख जहाँ का,
तहां खड़ा रह जाता।
होती है घुड़दौड़ जहाँ पर,
आज वहीँ है जाना।
इस घोड़े की करामात,
है दुनिया को दिखलाना।
हटो हटो,मत अड़ो राह में,
कहना मानो लल्ला।
नहीं लात लग जाएगी,
तो होगा नाहक हल्ला।