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मजदूर दिवस / मुकेश कुमार सिन्हा

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आज एक सोच मन मे आई
क्यूँ न समर्पित करूँ एक कविता
एक "मजदूर" को...
पर उसके लिए
कविता/गीत/छंद/साहित्य
का होगा क्या महत्व ?
फिर सोचा
मेहनतकश जिंदगी पर लिख डालूँ कुछ
पर रहने दिया वो भी
क्योंकि तब लिखनी पड़ेगी "जरूरतें"
और जरूरत से ज्यादा
भूख, प्यास, दर्द, पसीना
पर भी तो लिखना पड़ेगा...

और हाँ, अहम ज़रूरतें, इन पर क्या लिखूँ
गेहूं, चावल-दाल
मसाला व तेल भी
कहाँ से ला पाऊँगा उनके लिए
कुछ क्षण सुकून के
ठंडे हवा का झोंका भी तो
नहीं बंध पाएगा शब्द विन्यास में

छोड़ो यार! रहने देते हैं!
मना लेते हैं "मजदूर दिवस"
आने वाला है "एक मई"...