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ऐसे में तुम / जयप्रकाश मानस

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रोटी देखते ही

दीखने लगे

खलिहान

खलिहान में पसीने से तर-बतर पिताजी

गेहूँ से कंकड़ बीनती माँजी का बुझा हुआ चेहरा

तर रही तवा-सी पत्नी

चिट्ठी पहुँचते

मन टटोलने लगें

बालसखाओं की ठिठोलियाँ

उत्सव के दिन धमा-चौकड़ी

नदी-तट पर चहल-पहल

सूरज ढ़लते ही

इर्द-गिर्द उगने लगे

चप्पे-चप्पे तक अकाल की गहराती छाया

बुरे समय का आतंक

ज़हरीली ख़ामोशी श्मशान मानिंद

ऐसे में तुम ऐसे में तुम सीधे चले आना

उजली झील को लाँघकर

तरई के पार