भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पतझड़ के विरुद्ध / स्वरांगी साने
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:39, 4 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्वरांगी साने |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सुनो बड़ !
तुम्हें पूजती हैं औरतें इस मुल्क की
और तुम
पूरी करते हो
सबकी मनौतियाँ
इतना तो बताओ
तुमने कहाँ से माँगी मनौती
पतझड़ के विरुद्ध
हर बार हरे होने की।