भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धोखा / स्वरांगी साने
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:03, 4 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्वरांगी साने |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
— कोहनी टिकाए बैठी थी
कि मेज़ पर गिर पड़ी दो बून्दें
धोखा खा गए थे मेरे आँसू
वो तुम नहीं थे तुम्हारी छवि थी
जिसके बाहर हूँ मैं
तुम्हें देखती हुई
जिसके भीतर हो तुम कहीं और देखते हुए