भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विदाई के बाद / जयप्रकाश मानस
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:38, 17 अप्रैल 2008 का अवतरण
तेजी से उतर कर बैठ जाता है
नदी के तल में लोहा
धँस जाता है मित्र वैसे ही अंतस में
बगर-बगर उठता है और भी मित्र
जैसे धान की कटाई के बाद
घर को कोना-कोना
हर विधा
हर शब्द
हर कथ्य
हर शैली
हर व्याकरण में
विहँसने लगता है एकबारगी
जैसे दिन में उजियाला
जैसे निशा में चांदनी
जब भी
जहाँ भी
विलग होना पड़ता है मित्र को
नहीं पहुँच पाता
दरअसल विदाई के बाद
शुरू होता है मिलन
विदाई होती कहाँ है दरअसल