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सफ़र में / जयप्रकाश मानस
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पाँव धरते ही गिर सकते हैं
सूखती हुई नदी के टूटते कगार से
काई जमी चट्टान है अतीत
दूर बहु दूर है
दूसरे तट पर भविष्य
सबसे आसान है पहुँचने के लिए
वहाँ तक
चट्टानों को रगड़ती तेज़ धार में
धीरे-धीरे कद़म रखना
तिरछा
ति
र
छा