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शर्त / जयप्रकाश मानस
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शर्त यही है
मेरे साथ मित्रता की
कि आप बचाये रखना चाहते हों
दुनिया को साबुत शिद्दत के साथ
कि सिर्फ आपकी मित्रता के लिए
लुटती हुई दुनिया को
नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता अब
कि मेरी धड़कनों में सुनाई देता है
समुची दुनिया के लिए जाना-पहचाना छंद
छंद जिसे हवा-पानी-आग-भूमि-आकाश को
बाँटने की कलाबाजी भी तो आती नहीं
कहाँ से लाऊँ तुम्हारे जैसे घातक मन
मैं बाँह पसारे खड़ा हूँ दुनिया के गलियारे में
चले भी आओ
पर निःशर्त