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चींटियाँ-1 / हरीशचन्द्र पाण्डे

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गुलाब के तने से होते हुए पंखुड़ियों में टहल कर वे लौट भी आयीं
और पेड़ को पता तक नहीं चला

वे ऐसे ही टहलती हैं

सम्भावना कहाँ-कहाँ नहीं ले जाती है

ठीक जहाँ से चटकती है कली
ठीक जहाँ फूटते हैं पुंकेसर
ठीक जहाँ टिकते हैं फूल बौर और फल
मीठे की सम्भावना है वहाँ-वहाँ उन जोड़ों में
बिना मिठास के जुड़ भी नहीं सकता कोई किसी से

मीठा-सा कुछ हो कहीं
चीटियों को जाना ही है वहाँ
रस्ते में ख़ाली हाथ लौटती चींटियों को देख लौट नहीं आना है
न होने को अपनी आँखों से देखना है
और होने को तो चख़ना ही है

एक दिन पायी गयीं कुछ चींटियाँ मृत शहद से दूर पाँव रहित
शहर में ही छूट गये थे उसके पाँव

चीन्हें मीठे ने नहीं
अचीन्हे चिपचिपेपन ने ले ली उनकी जान