बाहर अटूट देखते रहने के बाद भी
नहीं भरा हिया
परस भी चाहिए उसे परस
आँखें दिपदिपाता खरगोश का ये बच्चा हरी घास में
रूठ कर दहाड़ मरती दो दाँतोंवाली ये बच्ची
ये हुमक-हुमक कर दूध पीता बछड़ा
ये सिर उचकाते फूलों के पुंकेसर...
गोकि हाथ काँप रहे हैं अशक्त
लेकिन छूकर ही मिलना है तोष
...मौत को अभी-अभी उसने
अपनी बच्चेदानी देकर लौटाया है।