रानी झांसी को जब हुकम सुना दिया जाता है तो वह झांसी की रानी नहीं बन सकती तो रानी झांसी ने फिर भी हार नहीं मानी। कई बार फिरंगी के नुमाइन्दों से बातचीत का दौर चला कि झांसी को रानी लक्ष्मी बाई को दिया जाये। जब आखिरी हुकम सुना दिया जाता है तो रानी झांसी को एक बार तो बड़ा धक्का लगता है मगर रानी लक्ष्मी बाई जल्दी ही उबर जाती हैं और पूरन को और झलकारी बाई जैसे योद्धाओं के साथ मिलकर फिरंगी से टकराने का फैसला करती है। एक दिन फिरंगियो के बारे में झलकारी बाई और लक्ष्मी बाई के बीच बातचीत होती है तो झलकारी बाई क्या कहती है फिरंगी हुकमरानों के बारे में:
गुलाम कर दिया म्हारा देश आपस मैं लडव़ाकै॥
फिरंगी छाये भारत उपर, गरीब गेरे कुंएं मैं ठाकै॥
चाल पाई या आण्डी बाण्डी
या राजनीति फिरंगी की लाण्डी
इनमै मारी खूबै डाण्डी या जनता बहकाकै॥
कितै मस्जिद पै लड़वाये सां
कितै बिन बात भिड़वावे सां
न्यों गुलाम बनावै सां, उन्टी ये सीख सीखाकै॥
धरती म्हारी खोंस लई है
लगन कई गुणा ठोक दई है
किसानी हो बेहाल गई है, कई मरे फंसी खाकै॥
फिरंगी नै बीज फूट के बोकै
किसान लूट लिये नंगे होकै
कहै रणबीर बी रोकै, देखो नै नजर घुमाकै॥