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दलित की छोरी बनी कमाण्डर / रणवीर सिंह दहिया

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आखिर झलकारी की उम्र ही क्या थी उस वक्त। इस उम्र में बाघ से लड़ना आश्चर्य की बात थी। कहां बाघ और कहां झलकारी गांव के लिए यह बहुत गौरव की बात थी। मगर कुछ को खुसी थी तो कुछ को ईर्ष्या थी। छोटी जात की लड़की किसी बाघ को मारदे-मरम्परा के हिसाब से यह ठीक नहीं होता था। गुण तो सवर्ण समाज के खाते में थे और अवगुण दलितों और पिछाड़ों के खाते में थे। समाज आसानी से इस बात को कैसे स्वीकार कर लेता है कि कोरी जाति की एक लड़की ने बाघ को पछाड़ दिया। खैर बड़ी होकर यही लड़की रानी झांसी की महिला सेना की कमाण्डर बनी समाज फिर इसे पचा नहीं पाया। क्या बताया भलाः

दलित की छोरी बनी कमाण्डर समाज पचा ना पाया॥
कोरी जात की छोरी पै कोए विश्वास जमा ना पाया॥
उँची जात के लोग लुगाई झलकारी घणै खटकै थी
या तलवार परम्परा की उसकी नाड़ पै लटकै थी
अन्ध विश्वास का मुकाबला वा करै पूरा डटकै थी
दिया बाघ मार जिसनै घोरी वीर बहादुर छंटकै थी
ऊँची जात का दबदबा बी झलकारी नै दबा ना पाया॥
भेड़िया समझ गोली चला दी गउ की बछिया लिकड़ी
पां मैं गोली लागी बछिया कै गाम आल्यां नै पकड़ी
झूठ-मूंठ के बहाने लाकै कई फतव्यां मैं जकड़ी
सब झेल गई झलकारी किसे आगै नाक ना रगड़ी
गहने बेच निभाये फतवे कोए राज बचा ना पाया॥
न्यों बोले या बन्दूक चलावै परम्परा सारी तोड़ दई
कमाण्डर बन सेना की परम्परा सब पीछै नै छोड़ दई
ऊँची जाति की गेल्यां लगा झलकारी नै होड़ दई
अपने पाह्यां कुल्हाड़ी मारी किस्मत इनै फोड़ लई
उसनै दिल जीत लिये मंजिल तै कोए हटा ना पाया॥
रानी लक्ष्मी बाई की उनै मैदाने जंग मैं ज्यान बचाई
पोशाक पहर कै रानी की फिरंगी गेल्यां जा टकराई
फिरंगी सेना रही देखती उनकी कोन्या पार बसाई
इस ढालां झलकारी नै रणबीर हिस्ट्री बनाई
जिन्दा दिली जिसी दिखाई कोए और दिखा ना पाया॥