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अप्प दीपो भव / यशोधरा 2 / कुमार रवींद्र
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कैसे दाय मिले
राहुल का
सोच रही है यशोधरा
शाक्य वंश की मर्यादा है
पिता दाय दे
यही उचित
नहीं पिता ने है स्वीकारा
प्रश्न उसे कर रहा व्यथित
इतने वर्षों
खारा सागर
उसकी आँखों रहा भरा
बुद्ध हुए वे
आये घर भी
पर उससे वे नहीं मिले
कमल खिले हैं ताल-ताल में
किन्तु यहीं पर नहीं खिले
रोपा उनने
हरसिंगार था
वह भी तो कल रात झरा
राहुल पाये राज
पिता के हाथों से ही
यही सही
जाये- माँगे दाय स्वयं ही
'अँखियन अँसुअन धार बही'
पुत्र पिता का
यही सत्य है
माँ तो उर्वर सिर्फ़ धरा