भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अप्प दीपो भव / आम्रपाली 2 / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:25, 5 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=अ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जाने क्यों
अनमनी
हुई आम्रपाली है

आये बुद्ध
वृक्ष-तले धरती पर बैठ गये
भिक्खु सभी खड़े रहे
रिक्त रहे पाट नये

उसने
बिछ्वाया था
सोने का आसन -वह खाली है

रत्न-जड़े
पिंजरे में बंद खगी चीख रही
बुद्ध ने सुजाता की
महिमामयी कथा कही

आँगन में
बँधा हुआ बन्दर भी
         बजा रहा ताली है

रेशमी दुकूलों से
सजी हुई
ड्योढ़ी निस्तेज हुई
कान्ति उसे अपनी भी
लगती है छुई-मुई

देह लगी उसको
ज्यों ठुकराई
       पूजा की थाली है