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अप्प दीपो भव / आनंद 3 / कुमार रवींद्र
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'रोओ आनन्द नहीं
मृत्यु सदा
साँसों के आसपास रहती है
'एक सत्य करुणा का
उसको ही बस साधो
अपनी संज्ञाओं को
देह से नहीं बाँधो
'कैसा यह अचरज है
मृत्यु जहाँ
अमृत की नदी वहीं बहती है
'मृत्यु से सकुचते हम
डरते हैं बिना-बात
आवुस, वह देखो तो
कैसा झरता प्रपात
'उसकी हर धार
सुनो ध्यान से
मृत्यु-कथा कहती है
'रात-ढले एकाकी होगे तुम
डरो नहीं
स्वीकारो जो भी है
दुविधा से भरो नहीं
'चिता एक शाश्वत है -
साँसों में
हर पल वह दहती है'
</poem