भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अप्प दीपो भव / आनंद 4 / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:38, 5 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=अ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कहा बुद्ध ने -
'सबके भीतर एक द्वीप है
भन्ते, मानो
'द्वीप मनोरम -
उस पर जलती एक जोत है
निश्छल-अपलक
उसी जोत से देह उपजती
यही सृष्टि का, सुनो, कथानक
'एक अगिनपाखी
है बैठा उसी जोत में
उसको जानो
'खोज रहे जो सुख
तुम बाहर
उसी द्वीप पर तुम्हें मिलेगा
वहीं ताल है एक अनूठा
जिसमें लीलाकमल खिलेगा
'भटको मत कस्तूरी मृग-से
खुशबू भीतर है
पहचानो
'देह रहे ना रहे
बुद्ध की जोत
तुम्हारे साथ रहेगी
उसे द्वीप पर जब खोजोगे
अपने भीतर तुरत मिलेगी
'जो है भीतर
बुद्ध तुम्हारे
भन्ते, केवल उसको ध्यानो'