भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कल देखना मुझे / जयप्रकाश मानस
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:24, 5 मार्च 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयप्रकाश मानस |संग्रह=होना ही चाहिए आंगन / जयप्रकाश मा...)
आज
वक़्त की धधकती भट्ठी में
पिघलाया जा रहा हूँ
जैसे अयस्क
पूरी तरह
पकने के बाद
मैं सबसे पहले गिरूंगा
निगोड़े वक़्त की गरदन पर
पूरी शक्ति के साथ
धारदार तलवार बनकर
कल देखना मुझे