भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तापमान 47 डिग्री सेल्सियस / शहनाज़ इमरानी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:12, 10 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शहनाज़ इमरानी |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बन रही ऊँची इमारत
कि थोड़ी-सी छाँव में बैठ कर
वो खाती है सूखी रोटी
प्याज, हरी मिर्च कुतर कर

कारीगर चिल्लाता है
"अरी ओ महारानी खा लिया हो तो उठ जा"
वो बिना चबाए निवाला गटकती है
दिन भर ढोती है रेत और सीमेण्ट
छत पर ले जाती है ईंटें और पानी

शाम को मिली मज़दूरी से
बच्चों के लिए ख़रीदती है आटा-दाल
शराबी पति की मार खाकर भी
परोसती है उसे खाना और
रात होते ही जिस्म अपना
 
एक दिन उसने पति पर
कुल्हाड़ी से कर दिया वार
कितनी असमानता है
दिन भर मेहनत करके भी
मिलती है मज़दूरी कम जिसे
क्यों नहीं कर सकती वार वो आदमी पर
कब तक दबाए रखती गुस्से को अपने अन्दर