भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समस्या / सुकुमार राय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:42, 11 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुकुमार राय |अनुवादक=शिव किशोर ति...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सब लिक्खा है इस पोथी में
दुनिया में जितनी ख़बरें हैं,
सरकारी दफ़्तरख़ानों में किस साहब का
कितना पावर, सब लिक्खा है।
कैसे बनते पुलाव-चटनी,
खाना-पीना, जादू-टोना,
साबुन-स्याही, अंजन मंजन
सब लिक्खा है, पढ़ो औ करो।
पूजा-पाठ, महूरत-साइत,
श्राद्ध-विधि और अन्तर-मन्तर
सब लिक्खा है।
खोज रहा हूँ, नहीं मिल रहा,
कैसे रोकें, कैसे पकड़ें,
अगर किसी दिन
पगला साँड़ तुड़ाकर भागे।
सुकुमार राय की कविता : कि मुस्किल (কি মুস্কিল) का अनुवाद
शिव किशोर तिवारी द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित