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एक मीनार है आग की / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र

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धूप में-छाँव में
जल रहीं पत्तियाँ हर गली-गाँव में

थी गुलाबी हवा
हो गयी वह धुआँ
साँस अमराई की
लग रही वह कुआँ

राख के ढेर हैं फूल के ठाँव में
हर गली-गाँव में

एक मीनार है आग की
फिर रही
एक पीली घटा
हर तरफ घिर रही

घास झुलसी हुई चुभ रही पाँव में
हर गली-गाँव में

ताल में तैरतीं
मोम की पुतलियाँ
चाँदनी का शहर
खोजतीं मछलियाँ

प्रेत-वन की परी घूमती नाव में
हर गली-गाँव में