भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैना का श्रीपुर प्रयाण / प्रेम प्रगास / धरनीदास
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:38, 19 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह=प्रेम प...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
चौपाई:-
इतना गुन जव पाँखे बखाना। सुनि पाँखेन कर ज्ञान भुलाना।।
जब सब पंखिन चेत सम्हारा। तब परमारथ वचन उचारा।।
तुम सब चाह धरहि अब भाई। प्रानमती मै देखों जाई।।
साधि घरी उत्तम ठहराई। तेंहि दिन विहसि चली वहराई।।
बहुत दिवस उदधी नियराई। पार चलो उडि सुमिरि गोंसाई।।
क्षुधावन्त मैना अकुलानी। खार पयोदधि पियत ना पानी।।
विश्राम:-
दिन समस्त मैना गई, तब सँझा भइ आय।
भूख पियासन ब्याकुली, थाकी उडि न सिराय।।20।।